जोशीमठ में किरायेदार घर छोड़कर भागे: प्रशासन ने इलाके को डेंजर जोन घोषित किया, अब तक 66 परिवार निकाले गए

उत्तराखंड का जोशीमठ धंस रहा है। शहर के मकानों में दरारें आ रही हैं। लोगों के सामने उनका घर-संसार बचाने की चेतावनी है। वहीं, प्रशासन की चेतावनी के बाद जोशीमठ के सिंगधर इलाके में किराए के मकान में रहने वाले लोग भाग चुके हैं। प्रशासन ने इलाके को डेंजर जोन घोषित किया है।

दूसरी तरफ, जोशीमठ के हालातों को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने आज एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। इसमें PM के सेक्रेटरी जनरल डॉ. पी के मिश्रा, PMO में कैबिनेट सेक्रेटरी और सरकार के वरिष्ठ अधिकारी और नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सदस्य शामिल हुए। उत्तराखंड जोशीमठ के जिला पदाधिकारी भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मीटिंग में मौजूद रहे।

उधर, प्रधानमंत्री मोदी ने भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को फोन कर इस मामले में जानकारी ली। धामी ने बताया कि पीएम ने कई तरह के प्रश्न पूछे जैसे कितने लोग इससे प्रभावित हुए हैं, कितना नुकसान हुआ, लोगों के विस्थापन के लिए क्या किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने जोशीमठ को बचाने के लिए हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है।

CM धामी के सामने बिलखकर रोए लोग
लोगों का दर्द बांटने के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जोशीमठ पहुंचे। लोग उनके सामने बिलखकर रोने लगे। महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। वे बोलीं- हमारी आंखों के सामने ही हमारी दुनिया उजड़ रही है, इसे बचा लीजिए। हमें अपने घरों में रहने में डर लग रहा है। इधर, चमोली जिला प्रशासन ने बताया- जोशीमठ के 9 वार्डों के 603 घरों में अब तक दरारें आई हैं। 66 परिवारों को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है।

शंकराचार्य ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल की
ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल की है। उन्होंने कहा- पिछले एक साल से जमीन धंसने के संकेत मिल रहे थे। सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया गया। ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक नगर जोशीमठ खतरे में हैं।

पुराने ग्लेशियर पर बसा जोशीमठ, खुदाई-ब्लास्टिंग से मलबे में बदल सकता है शहर
जोशीमठ के धंसने से करीब 5 हजार लोग दहशत में हैं। उन्हें डर है कि उनका घर कभी भी ढह सकता है। सबसे ज्यादा असर शहर के रविग्राम, गांधीनगर और सुनील वार्ड में है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जोशीमठ के मकानों में दरार आने की शुरुआत 13 साल पहले हो गई थी।

हालात काबू से बाहर निकले तो NTPC पॉवर प्रोजेक्ट और चार धाम ऑल वेदर रोड का काम रोकने के आदेश दे दिए गए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्लास्टिंग और शहर के नीचे सुरंग बनाने की वजह से पहाड़ धंस रहे हैं। अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो शहर मलबे में बदल सकता है।

हिमालय के इको सेंसेटिव जोन में मौजूद जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी तक जाने का एंट्री पॉइंट माना जाता है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जोशीमठ की स्थिति क्यों संवेदनशील है। जोशीमठ की जियोलॉजिकल लोकेशन पर जारी रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ये शहर इतना अस्थिर क्यों है। सिलसिलेवार तरीके से इन्हें समझ लेते हैं

1. वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट- जोशीमठ ग्लेशियर के मलबे पर बसा
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने अपनी रिसर्च में कहा था- उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांव ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हैं। जहां आज बसाहट है, वहां कभी ग्लेशियर थे। इन ग्लेशियरों के ऊपर लाखों टन चट्टानें और मिट्टी जम जाती है। लाखों साल बाद ग्लेशियर की बर्फ पिघलती है और मिट्टी पहाड़ बन जाती है।

2. एमसी मिश्रा कमेटी ने कहा था- जोशीमठ के नीचे मिट्टी-पत्थर के ढेर
1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि जोशीमठ का इलाका प्राचीन भूस्सखलन क्षेत्र में आता है। यह शहर पहाड़ से टूटकर आए बड़े टुकड़ों और मिट्टी के ढेर पर बसा है, जो बेहद अस्थिर है।

कमेटी ने इस इलाके में ढलानों पर खुदाई या ब्लास्टिंग कर कोई बड़ा पत्थर न हटाने की सिफारिश की थी। साथ ही कहा था कि जोशीमठ के पांच किलोमीटर के दायरे में किसी तरह का कंस्ट्रक्शन मटेरियल डंप न किया जाए।

3. हिमालय में पैरा-ग्लेशियल जोन की विंटर स्नो लाइन पर बसाहट
जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। वैज्ञानिक भाषा में ऐसी जगह को डिस-इक्विलिब्रियम (disequilibrium) कहा जाता है। इसके मायने हैं- ऐसी जगह जहां जमीन स्थिर नहीं है और जिसका संतुलन नहीं बन पाया है।

एक वजह यह भी है कि जोशीमठ विंटर स्नो लाइन की ऊंचाई से भी ऊपर है। विंटर स्नो लाइन या शीत हिमरेखा वह सीमा होती है, जहां तक सर्दियों में बर्फ रहती है। ऐसे में भी बर्फ के ऊपर मलबा जमा होते रहने पर वहां मोरेन बन जाता है।

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