सूरजकुंड मेला के थीम स्टेट के हस्तशिल्प उत्पादों की ओर आकर्षित हो रहे पर्यटक

पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के उत्पाद प्रदर्शित हैं पूर्वोत्तर पेविलियन में
सूरजकुंड (फरीदाबाद), 4 फरवरी। 36वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला के थीम स्टेट पुर्वोत्तर के 8 राज्यों की हस्तशिल्प उत्पादों का बांस से निर्मित उत्तर पूर्व पवेलियन में प्रदर्शन किया गया है। इन आठ राज्यों परंपरागत के परंपरागत शिल्प कला का अनूठा नमूना इस पवेलियन में देखने को मिल रहा है। विशेषकर महिलाएं इस पवेलियन के उत्पादों में विशेष रूचि ले रही हैं। उत्तर पूर्व जोनल सांस्कृतिक केंद्र की समन्वयक पपली गोगोई के नेतृत्व में इन आठ राज्यों की टीमों में दो-दो शिल्पी शामिल हैं।
36वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला में थीम स्टेट के तहत पूर्वोत्तर के आठ राज्यों सिक्किम, असम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, मणीपुर, अरूणाचल प्रदेश तथा मिजोरम के परंपरागत शिल्प उत्पादों में पर्यटक रूचि दिखा रहे हैं। हस्तशिल्प मेला में प्रथम बार इन राज्यों को थीम स्टेट के रूप में एक छत के नीचे लाया गया है। इन राज्यों की टीमों में एक-एक मास्टर ट्रैनर एवं एक-एक शिल्पी को शामिल किया गया है। जो मौके पर अपनी शिल्पकला का प्रदर्शन कर रहीं हैं।
पूर्वोत्तर पवेलियन में सिक्किम की परंपरागत शिल्पकला टांका, असम की शिल्पकला, मेघालय की ऊन के समान धागे से बनी ऐरी तथा एक्रेलिक के उत्पाद, नागालैंड की शॉल क्यूशन कवर, त्रिपुरा की रिशा, फसरा, वैस्कॉट, मणिपुर के प्योर कॉटन से बने शॉल, मेकला, रनर्स, अरूणाचल प्रदेश के विशेषकर महिला शिल्पकारों व बुनकरों के उत्पाद व मिजोरम के शिल्पकारों के बैग, शॉल, लेडी पर्स, किड्स वियर, पारंपरिक आभूषण आदि उत्पाद भी पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं।
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पूर्वोत्तर के आठ राज्यों की शिल्पकला से जुड़ी जानकारी
प्राचीन काल में सिक्किम के नेपचा समुदाय द्वारा स्टिनजिंग नेटल के पौधे से बुने गए धागे से बने कपड़ों का प्रयोग किया जाता था। वर्तमान में यहां के लोग कॉटन ओर ऊनी धागे का वैजीटेबल डाइज एवं सिन्थेटिक कलर का एक साथ प्रयोग करते हैं। असम के पारंपरिक हैंडलूम के बारे में राष्टï्रपिता महात्मा गंाधी के खादी व स्वदेशी उत्पादों को बढावा देने के लिए असम दौरा के दौरान कहा था कि आसाम की महिलाएं अद्भुत कपड़े बुनती हैं। मेघालय में गारो महिलाओं का कपड़ा बुनना पारंपरिक व्यवसाय है। यहां का एंडी सिल्क (ईएनडीआई सिल्क) टेक्सचर एवं टिकाऊ पन के लिए प्रसिद्ध है।
त्रिपुरा में ग्रामीण महिलाएं कपड़ा बुनाई को प्राथमिकता देती हैं। वे अपनी पारंपरिक वेशभूषा के हिस्सों रेशा व रिनाई को स्वयं बुनती हैं। नागालैंड में बुनाई का कार्य सभी आयुवर्ग एवं समुदायों की महिलाओं द्वारा विशेष रूप से किया जाता है। मणिपुर विशेष तौर पर मोएरेंगफी, लीरम, लेंसिगफी तथा फैनक फैब्रिक्स मुख्य रूप से प्रसिद्ध है। मिजोरम में बुनाई लोगों के सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अरूणाचल प्रदेश का गैलो गीत कॉटन उत्पादन की पूरी कहानी कहता है। यह गीत गांव की लड़कियों द्वार नृत्य द्वारा गाया जाता है। कपड़ा बुनना अरूणाचल प्रदेश के लोगों के लिए प्राचीन कला रहा है। इस प्रदेश की महिलाएं अच्छी बुनकर हैं तथा उनमें रंग के चुनाव और डिजाईन की अच्छी परख है।

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