पानीपत के कलाकार प्रकाश नाथ रहे हैं सभी हस्तशिल्प मेलों के गवाह

-सन 1987 से लगातार सभी मेलों में बने हुए हैं संस्कृति के ध्वजवाहक
सूरजकुंड (फरीदाबाद), 11 फरवरी। 36 वें सूरजकुंड अंतरराष्टï्रीय हस्तशिल्प मेला में जहां एक ओर विदेशी कलाकार अपने देशों की संस्कृति को पर्यटकों तक पहुंचा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हरियाणा के कलाकार भी पारंपरिक वेशभूषा में परंपरागत वाद्य यंत्रों के साथ मेला पर्यटकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। छोटी-बड़ी चौपालों के अलावा मेला के विभिन्न कोनों में स्थानीय कलाकार पारंपरिक वेशभूषा पर्यटकों का खूब मनोरंजन कर रहे हैं तथा पर्यटक भी पारंपरिक वाद्य यंत्रों की सुरीली धुनों पर थिरक रहे हैं।
हस्तशिल्प मेला में पानीपत के वजीरपुर-टिटाना निवासी 68 वर्षीय प्रकाश नाथ अपने साथी कलाकारों के साथ गुरू गोरखनाथ व कानीपानाथ प्रणाली को आगे बढ़ाते हुए पर्यटकों का मनोरंजन कर रहे हैं। प्रकाश नाथ ऐसे कलाकारों में शामिल हैं, जिन्होंने अब तक आयोजित सभी हस्तशिल्प मेलों में हरियाणा की संस्कृति के ध्वज वाहक बन रहे हैं। सन 1987 से शुरू हुए सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला में भी प्रकाश नाथ की बीन पार्टी के अलावा नगाड़ा व बंचारी की पार्टी ने भी शिरकत की थी।
कलाकार प्रकाश नाथ अपनी खानदानी (सपेरा/जोगीनाथ बीन) परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अपने पिता प्रेमनाथ से उस समय बीन बजानी सीखी थी, जब वे आठवीं कक्षा में पढते थे। वे अपनी टीम के सदस्यों नारायण नाथ, बैजनाथ, स्वामीपाल, संदीप, अभिषेक, अनिल व अरूण के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों बीन, तुंबा, झांझ, चिमटा व ढोल की सुरीली तान व थाप पर पर्यटकों को नाचने पर मजबूर कर रहे हैं।
प्रकाश नाथ का कहना है कि उन्होंने युवाओं की पसंद पर ढोल वाद्य यंत्र को शामिल किया है। वे पहले बीन पर लहरा की प्रस्तुति देते थे। इसके बाद हरियाणवी गीतों की धुनों पर प्रस्तुति शुरू की तथा अब वे पंजाबी, अंगेजी व फिल्मी गानों की धुन बजाकर लोगों को खूब नचा रहे हैं। उन्होंने कहा कि शुरू में वाद्य यंत्रों में छोटी नगाडी का प्रयोग किया जाता था, परंतु अब लोगों की पसंद के अनुसार ढोल ने छोटी नगाडी की जगह ले ली है। वे सरकारी कॉलेज से सहायक के पद से सेवानिवृत होकर भी हरियाणवी संस्कृति के ध्वजवाहक बने हुए हैं।

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