राम कथा में हुआ श्री राम रावण युद्ध ,श्री राम राज्याभिषेक चरित्र का सुंदर वर्णन

श्री राम कथा के अंतिम दिन 25 फरवरी को होगा  विशाल भंडारे का आयोजन -रणवीर चौधरी

फरीदाबाद, 24 फरवरी रामा कृष्णा फाउंडेशन, श्री राम मंदिर सेवा  समिति, रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन सेक्टर 9 के संयुक्त तत्वावधान में परम पूज्य आचार्य श्री कृष्णा स्वामी जी द्वारा व्याख्यान की जा रही श्री राम कथा में राम हनुमान मिलन, सेवा सहित लंका यात्रा ,सेतु लीला ,रामेश्वरम की स्थापना, श्री राम रावण युद्ध ,श्री राम राज्याभिषेक चरित्र ,का प्रसंग भावुकतापूर्ण, भक्तिरस रस से ओतप्रोत संगीत भजनों सहित किया गया l इससे पहले मुख्य रूप से पहुंचे  हरियाणा फार्मेसी के चेयरपर्सन धनेश अदलखा और उनकी धर्मपत्नी रेखा अदलखा ,उद्योगपति गौतम चौधरी विशेष रूप से उपस्थित रहे।
यजमान के रूप में  दलीप यादव, राम लाल बोराड़, योगेश गोयल, प्रवेश  सोनी रहे।  इसके आलावा  केशव मंगला, राकेश गुप्ता, विनोद वशिष्ठ, एपी महलोत्रा, अलका गोयल, मानव सेवा समिति से कैलाश शर्मा, महेश्वरी महिला मंडल की अध्यक्ष पुष्पा झावर, श्री राम मंदिर सेवा समिति की और से कई लोगों की उपस्थित रही।
आचार्य श्री कृष्णा स्वामी जी ने वर्णन करते हुए कहा की लंका से हनुमान जी के लौटने के बाद भगवान राम ने सागर पार करने की योजना पर विचार करना शुरू कर दिया। बाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम ने सबसे पहले सागर का निरिक्षण किया की किस स्थान से पुल बनाना आसान होगा। इसके बाद पुल का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। लेकिन जो भी पत्थर समुद्र में डाले जाते सभी डूब जाते। इससे वानर सेना में निराशा बढ़ने लगी। तब भगवान राम ने सागर से प्रार्थना शुरू की। सागर से कहा कि वह पुल निर्माण के लिए फेंके गए पत्थरों को बांधकर रखे। लेकिन सागर ने विनती नहीं सुनी।
भगवान राम को इससे सागर पर क्रोध आ गया। राम ने अपने दिव्य वाण को जैसे ही धनुष पर चढ़ाया सागर भागकर श्री राम के चरणों में आकर गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा। भगवान राम ने सागर को क्षमा दान दिया। सागर ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो वानर हैं।यह भगवान विश्वकर्मा के पुत्र हैं और विश्वकर्मा के समान ही शिल्पकला में निपुण हैं। इनके हाथों से पुल का निर्माण करवाइए, मैं पत्थरों को लहरों से बहने नहीं दूंगा। राम ने नल और नील के हाथों पुल निर्माण का काम शुरू करवाया।
नल और नील को वरदान प्राप्त था कि उनके हाथों से फेंका गया पत्थर पानी में डूबेगा नहीं। बस फिर क्या था देखते ही देखते वानर सेना ने महज पांच दिनों में लंका तक पुल का निर्माण कर दिया।  भगवान राम और रावण के महायुद्ध में कुंभकर्ण और मेघनाद की मृत्यु के बाद जब रावण युद्धरत होता है तो कुछ समय बाद वह पाता है कि अब वह लगभग अकेला है, क्योंकि उसकी निशाचर सेना का अधिकांश हिस्सा मृत्यु की गोद में जा चुका है। ऐसे में रावण तत्पर होता है उस मायावी युद्ध के लिए, जहां सब कुछ मायावी खेल है। परम पूज्य आचार्य श्री कृष्णा स्वामी जी ने व्याख्यान करते हुए कहा की राम-रावण युद्ध को रावण ने अपनी मायावी शक्तियों के सहारे लड़ा लेकिन अंतत वह पराजित हुआ। यह निशाचरी प्रवृत्तियों पर सतोगुणी आचरण की विजय गाथा है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जीवन गाथा  हमारा पथ-प्रदर्शन भी कर रही है. कथावाचक परम पूज्य आचार्य श्री कृष्णा स्वामी जी ने  श्री राम राज्याभिषेक चरित्र का वर्णन करते हुए कहा की  ‘भरत ने चौदह वर्ष तक भगवान श्रीराम की खड़ाऊ सिंहासन पर रखकर राज-पाठ संभाला और अयोध्या वापस आने पर श्रीराम को सौंप दिया। आज के समाज को भरत जी से प्रेरणा लेने की जरूरत है, ताकि भाई से भाई का प्रेम बना रहे और परिवारों में आ रहीं दरारों को पाटा जा सके। परिवारों को विघटित होने से बचाया जा सके। साथ ही लोग वैश्विक परिवार की कल्पना को साकार करें। समाज को राम भक्त हनुमान से निस्वार्थ भक्ति की सीख लेनी चाहिए।’ आरडबल्यूए सेक्टर 9 के प्रधान रणवीर चौधरी जी ने बताया की श्री राम कथा के अंतिम दिन 25 फरवरी को विशाल भंडारे का आयोजन मंदिर के प्रागण में किया जायेगा।

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