लोधी राजपूत जनकल्याण समिति ने स्वामी ब्रह्मानन्द का 132वां जन्मदिवस मनाया
फरीदाबाद। लोधी राजपूत जन कल्याण समिति फरीदाबाद द्वारा अपने कार्यालय डबुआ कालोनी में परम श्रद्धेय, स्वतंत्रता सेनानी, प्रथम भगवाधारी सन्यासी सांसद, गौरक्षक, मानव रत्न, शिक्षा के सागर, बुन्देलखण्ड के मालवीय स्वामी ब्रह्मानन्द जी का 132वां जन्मोत्सव कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस अवसर पर स्वामी ब्रह्मानंद के चित्र पर सचिन तंवर, सुरेश चन्द पाठक, लाखनसिंह लोधी, रूपसिंह लोधी, धर्मपाल सिंह लोधी, नन्दकिशोर लोधी, स्वामी वीरभद्र, सुदर्शन कुमार, दीपक यादव, संजीव कुमार लोधी, शीशपाल शास्त्री, दिनेश राघव, अजब सिंह लोधी, शिशुपाल सिंह लोधी, देवी सिंह लोधी पुष्प अर्पित कर नमन किया।
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इस मौके पर लोधी राजपूत जनकल्याण समिति ने केन्द्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार व हरियाणा सरकार से आग्रह किया कि स्वामी ब्रह्मानन्द जी के नाम से किसी महाविद्यालय, शिक्षण संस्थान का नामकरण किया जाए साथ ही ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी संत के लिए भारत रत्न से सभी सम्मानित करें।
समिति संस्थापक, महासचिव लाखन सिंह लोधी ने स्वामी जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बताया कि स्वामी ब्रह्मानन्द जी का जन्म 4 दिसम्बर 1894 में हमीरपुर राठ के बलहरा ग्राम में हुआ था। इन्होंने हरिद्वार में हरि की पैड़ी पर गंगा में खड़े होकर सन्यास ग्रहण करते समय प्रतिज्ञा कि दृव्य को हाथ नहीं लगायेंगे और नहीं स्त्रीगमन करेंगे जिसे जीवनपर्यन्त निभाया।
स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने देश की आजादी के लिए नमक आन्दोलन, सत्याग्रह आन्दोलनों में भाग लेकर जेल यात्राऐं की। बुन्देलखण्ड के मालवीय कहे जाने वाले स्वामी जी ने शिक्षा क्षेत्र में ब्रह्मानन्द डिग्री विश्वविद्यालय ;कृषिद्धए ब्रह्मानन्द संस्कृत महाविद्यालयए ब्रह्मानन्द इण्टर कालेज उपलब्ध कराये।
1967 में जनसंघ से सांसद बनकर पहले भगवाधारी संत ने गौरक्षा के आवाज उठाई। 1972 में पुन: सांसद बन कर्मयोगी स्वामी जी ने सदैव गरीब, शोषितों के लिए आवाज उठाते रहे। अपनी सांसद निधि से जरूरतमंद और शिक्षा के लिए दान देते रहे। स्वयं काम, क्रोध, लोभ से परे रहकर भिक्षा से ही जीवन यापन करते रहे। ऐसे कर्मयोगी महान संत विरले ही भारत भूमि पर अवतरित होते हैं। उनकी जीवनी को पढक़र हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके कार्यों को देखते हुए हम सभी भारत सरकार से आग्रह करते हैं। उन्हें भारत रत्न दिया जाय। ह
रियाणा सरकार किसी विश्वविद्यालय, संस्थान का नाम स्वामी ब्रह्मानन्द रखे। जिससे नई पीढ़ी उनकी जीवनी से त्याग, तपस्या राष्ट्र समर्पण को पढक़र उनके पदचिन्हों पर चलने का प्रयास करें। आइये हम सभी उन्हें नमन् करें।
